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गोवर्धन के राधाकुंड में डुबकी लगाने से भर जाती है निसंतानों की गोद, लगता है बड़ा मेला

ByVijay Singhal

Oct 15, 2022
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हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। गोवर्धन के राधाकुंड में सुहागिन को संतान का सुख कंगन से बने कुंड से मिलता है। ये कोई साधारण कंगन नहीं, बल्कि ब्रजभूमि की महारानी राधारानी के कंगन से बना है। राधाकुंड अरिष्टासुर की नगरी अरीठ वन थी। अरिष्टासुर बलवान व तेज दहाड़ वाला राक्षस था। उसकी दहाड़ से आसपास के नगरों में गर्भवती के गर्भ गिर जाते थे। गाय चराने के दौरान अरिष्टासुर ने बछड़े का रूप रखकर भगवान कृष्ण को मारने की कोशिश की। कान्हा के हाथों बछड़े का वध करने से उन्हें गोहत्या का पाप लग गया। प्रायश्चित के लिए श्रीकृष्ण ने बांसुरी से कुंड बनवाया और तीर्थों का जल यहां एकत्रित किया। इसी तरह राधारानी ने भी अपने कंगन से कुंड खोदा और तीर्थों का जल एकत्र किया, जब दोनों कुंड भर गए तो कृष्ण और राधा ने रास किया। श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी निसंतान दंपति अहोई अष्टमी की रात यहां स्नान करेगा, उसे सालभर के भीतर संतान की प्राप्ति होगी। इसका उल्लेख ब्रह्मा पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में है। यहां हर आंखें बरसती हैं। किसी की आंखें खुशी में तो किसी की वेदना में। जलस्वरूपा राधारानी के वरदान का सागर राधाकुंड, आभार और अनुरोध का संगम नजर आता है। आंचल फैलाती ममता के मुंह से बस एक ही करुण पुकार सुनाई देती है कि हे राधारानी, मेरी भी सूनी झोली भर दो। दुनिया भर का दर्द समेटे दंपति राधाकुंड में विश्वास के गोते लगाते नजर आएंगे। 17 अक्तूबर को अहोई अष्टमी का व्रत कर आधी रात को राधाकुंड में संतान सुख की कामना लिए विश्वास के गोते लगाएंगे। इसके लिए राधाकुंड भी अपनी सुंदरता पर इठलाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार अहोई अष्टमी पर राधाकुंड में आधी रात स्नान करने वाले दंपती को संतान की प्राप्ति होती है। स्नान के उपरांत एक पसंदीदा फल छोड़ने का विधान है तो पेठा फल का दान भी परंपरा में शामिल है। तमाम देशी और विदेशी दंपती यहां आकर अपना आंचल फैलाएंगे। वहीं संतान की सुख प्राप्त करने वाले दंपती इस रात राधारानी का आभार जताने के लिए भी स्नान करेंगे। दुनिया भर की चिकित्सा से निराश दंपति जब जल स्वरूपा राधारानी के दरबार में अपना आंचल फैलाते हैं तो दरबार सजाए बैठी राधारानी अपना आशीष भरा हाथ उनके सर पर फेरती हैं। यह विश्वास उन सूनी आंखों में चमक बिखेर देता है, जब बगल में बैठे दंपति अपनी संतान के साथ कृपा का आभार प्रकट करने को गोते लगाते हैं। यह विश्वास ही है, जो हर साल दंपति की संख्या में इजाफा कर देता है। यह स्नान राधाकुंड में 17 अक्तूबर को रात 12 बजे होगा। तमाम भक्त शाम आठ बजे से ही घाटों पर बैठ जाते हैं।
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Vijay Singhal
Author: Vijay Singhal

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