हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। गोवर्धन पूजा के अवसर पर ब्रज में बुंदेली दिवाली की झलक देखने को मिल रही है। बुंदेलखंड के 51 जिलों से आए श्रद्धालुओं ने पहले यमुना स्नान किया फिर मंदिरों के दर्शन किए। इसके बाद नाच गा कर की भगवान की आराधना। अलग-अलग ग्रुप में आए श्रद्धालु मस्ती में सराबोर नजर आए। यमुना स्नान के बाद ये लोग जल ग्रहण करते हैं और फिर ब्रज में पूरा 13 वर्ष का मौन व्रत पूरा करते है। बुंदेली दिवाली को गौचारण भी कहा जाता है। गौचारण मौन व्रत का उल्लेख धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में भी मिलता है। आचार्य अवधेश बादल ने बताया कि गौचारण मौन व्रत की शुरुआत दीपावली पर्व से होती है। बुंदेलखंड यानी की मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का सीमांत इलाका जो आपस में जुड़ा हुआ है। उस क्षेत्र से जुड़े 51 जिलों के लोग इस व्रत को करते हैं। जिसे बोलचाल की भाषा में मोहनिया कहा जाता है। अब यह शब्द अप भ्रंश होकर मोनिया कहलाता है। आचार्य अवधेश बादल ने बताया कि बुंदेलखंड के अधिकांश लोग गौचारण मौन व्रत रखते हैं। यह व्रत 12 वर्ष तक रखा जाता है। मान्यता है कि व्रत का संकल्प लेने वाले श्रद्धालु बारह वर्षों तक मोर पंख एकत्रित करते हैं। पहले वर्ष कम से कम 5 मोर पंख व्रत एकत्रित करने होते हैं। उसके बाद उसमें हर वर्ष 11,21 क्षमता अनुसार मोर पंख जोड़ते हुए चलते हैं। व्रत रखने वाले व्यक्ति को मोर पंख खरीद कर नहीं बल्कि जंगलों में घूम घूम कर एकत्रित करने होते हैं।
गौचारण मौन व्रत रखने वाले लोग पहले 12 वर्ष तक दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज पर 7 गांव की परिक्रमा करते हैं। वहां बने देवालय में दर्शन करते हैं। इसके बाद 13वें वर्ष इस व्रत को पूरा करने के लिए मथुरा वृंदावन आते हैं। वृंदावन में आ कर गोवर्धन पूजा के दिन यमुना स्नान करते हैं। दिनभर दर्शन करते हैं, परंपरागत वाद्य यंत्रों की धुन पर दिवाली नृत्य करते हैं । शाम के समय मोर पंखों को यमुना में प्रवाहित कर देते हैं। गौचारण मौन व्रत रखने वाला व्यक्ति एकत्रित किए गए मोर पंख में गाय की पूंछ के बाल से रस्सी बनाकर उसमें पहले वर्ष एक गांठ लगाता है।

इसके बाद जैसे जैसे हर वर्ष व्रत बढ़ता है उसमें गांठ की संख्या बढ़ती चली जाती है। मोर पंख की गठरी में लगाई गई गांठ बताती है कि व्रत रखे हुए कितने वर्ष हो गए। गौचारण मौन व्रत पूरा करने आने वाले श्रद्धालु गोपियों की तर्ज पर ही मोर पंख लिए ढोलक की थाप पर रंग बिरंगी पोशाक पहन कर नृत्य करते हैं। लट्ठ की धमक से दिवाली खेलते हैं। इस दौरान भगवान कृष्ण को रिझाने के लिए स्वरचित लोक गीतों का गायन करते रहते हैं। जिससे माहौल भक्तिमय हो जाता है।
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Author: Vijay Singhal
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