लगभग चार दशक पहले “वेदना निग्रह रस’’ के नाम से एक दवा आती थी जिसमें दो दर्जन से अधिक रोगों के इलाज का दावा किया जाता था। मुड़िया पूनो मेला भी कुछ ऐसी ही कहानी कह रहा है। वहां किसी स्टाल पर हर माल दस रूपए में बिक रहा है तो कहीं आवाज लगाकर 100 रूपए में तीन खिलौने बिक रहे हैं। कहीं दस रूपए में ठाकुर की पोशाक और मुकुट बिक रहा है तो कहीं चूहे मारने की दवा भी मिल रही है। कहीं जोड़ों के दर्द को दूर करने का बाम मिल रहा है तो कहीं नशा मुक्ति की भी दवा मिल रही है। महिलाओं के लिए कहीं फैंसी कड़े मिल रहे हैं तो पानी से बचत के लिए दस रूपए में प्लास्टिक की बरसाती मिल रही है। गोलगप्पे और चाउमीन खानेवालों की लाइन लगी है तो पहलवान प्रकार के लोग कुल्हड़ भरकर दूध पी रहे हैं। कहीं पर भोलेनाथ के प्रतीक के रूप में पांच या 6 खुर वाले बैल को सजाकर पैसा दान करने को कहा जा रहा है तो कहीं पर बन्दरों को केला या चना खिलाने के लिए बेंचा जा रहा है। जगह जगह पर परिक्रमा के दौरान आई थकान को दूर करने के लिए मशीनों से मसाज करने की व्यवस्था की गई है। तुलसी माला या रूद्राक्ष आदि की माला का भी व्यापार मेले में अच्छा चल रहा है तो चाबी के गुच्छे में नाम लिखनेवालेां के यहां भी भीड़ दिखाई पड़ती है।सपेरों का यदि सांप दिखाने का व्यवसाय चल रहा है तो गुटका बेंचनेवालों की संख्या में कमी नही है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भंडारों में खाना पसन्द नही करते हैं तथा ऐसे लोग चाय की दुकानों में चाय, शीतल पेय, पैक्ड फूड ले रहे हैं। स्थाई दुकानों में लस्सी पीने या पूड़ी ,कचैडी रबड़ी, नाना प्रकार की मिठाई , समोसा आदि खानेवालों की लाइन भी लगी है तो पेट का हाजमा सही करने के लिए बेल का शर्बत भी बिक रहा है।ठाकुर जी पर चढ़ाने के लिए मेले में सिन्थैटिक दूध धड़ल्ले से बिक रहा है तो कुछ दुकानों पर प्रसाद के पैकेट भी बिक रहे हैं। पान के शौकीन तरह तरह के पान खा रहे हैं किंतु सबसे अधिक मांग बनारसी मघई पान की है।मेले में मथुरा के पेड़े कम दाम पर बेचने का खेल भी चल रहा है । इन पेड़ों में चावल के आटा ने अधिकांश खेाये को चलन से बाहर कर दिया है।पानी पूड़ी खानेवालों की संख्या सबसे अधिक है।जेबकतरे भी मेले में लोगों के मोबाइल या अन्य कीमती सामान पर हाथ साफ कर रहे हैं यह बात दीगर है कि पुलिस की जलालत से बचने के लिए लोग थानों में इनकी शिकायत नही कर रहे हैं।
मेले में यदि दुकानदारों में कम्पटीशन चल रहा है तो इस कम्पटीशन में मन्दिर भी पीछे नही है।गोवर्धन के प्रमुख मन्दिरों का ठेका लगभग सात करोड़ से अधिक है तो परिक्रमा मार्ग में पड़नेवाले छोटे मन्दिर ने लाउडस्पीकर लगा रखे हैं जिनके माध्यम से परिक्रमार्थियों को हिदायत दी जाती है कि इस मन्दिर की परिक्रमा या दर्शन किये बिना गिर्राज परिक्रमा अधूरी रह जाएगी । बड़े मन्दिरों में अखण्ड ज्योति जलाने का प्रलोभन देकर शुद्ध देशी घी के कनस्तर लेने या एवज में धनराशि लेने के लिए तीर्थयात्रियों को तैयार करने का खेल चल रहा है। इस मेले में गिर्राज जी सबको दे रहे हैं जहां स्थाई दुकानों में ऐसी बिक्री हो रही है कि दुकान फायदे का सौदा साबित हो रही है तो परिक्रमा करने वालें पुण्य कमा रहे हैं।कुल मिलाकार गोवर्धन का मुड़िया पूनो मेला अपनी अलग ही पटकथा लिख रहा है।
