हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। गोवर्धन के राधाकुंड में निसन्तान कुंड में पति पत्नी कुंड में स्नान कर सन्तान की कामना करते है। अहोई अष्टमी का ये पर्व यहां प्राचीन काल से मनाया जाता है। इस दौरान पति औऱ पत्नी दोनों एक साथ निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि को राधाकुंड में डुबकी लगाते हैं। केवल इतना ही नहीं जिस दंपति की मनोकामना पूरी हो जाती है वह भी अहोई अष्टमी के पावन पर्व पर अपने सन्तान के साथ यहां राधा रानी की शरण में हाजिरी लगाने आते है। कहा जाता है किराधाकुंड में अहोई अष्टमी के दिन स्नान करने के दौरान एक फल छोड़ने का विधान है। कहा जाता है कि जब दंपत्ति यहां स्नान करने आते हैं तो उनको एक संकल्प लेना होता है। जिसमें उन्हें संतान की प्राप्ति न होने तक एक फल का त्याग करना होता है। क्योंकि पैठे का फल अधिकांश लोग नहीं खाते तो दंपती लाल कपड़े में पैठे का फल बांधकर संकल्प लेते हुए स्नान करते समय उसे राधाकुंड में छोड़ देते हैं।
राधाकुंड से संबंधित एक कथा के अनुसार कंस ने भगवान श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था। अरिष्टासुर बछड़े का रुप लेकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और उन्हें मारने लगा । भगवान श्रीकृष्ण ने बछड़े के रुप में छिपे दैत्य को पहचान लिया। श्रीकृष्ण ने उसको पकड़कर जमी पर पटक पटक कर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गौ हत्या का पाप लग गया है। इस पाप से मुक्ति हेतु उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। राधा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि वह सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें, जिससे उन्हें गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। देवर्षि के कहने पर श्रीकृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पाप मुक्त हो गए। कृष्ण कुंड और राधा कुंड की अपनी एक विशेषता है कि दूर से देखने पर कृष्ण कुंड का जल काला और राधा कुंड का जल सफेद दिखाई देता है जो कि श्रीकृष्ण के काले वर्ण के होने का और देवी राधा के सफेद वर्ण के होने का प्रतीक है। यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। और हर वर्ष यहां लाखों की संख्या में भक्त स्नान करने आते हैं।
अहोई अष्टमी पर्व पर राधाकुंड में रात जैसे ही 12 बजे दंपती स्नान करने लगे। राधाकुंड का ऐसा कोई घाट नहीं जहां पति पत्नी हाथ पकड़ कर स्नान करते नजर न आए हों। राधाकुंड के घाटों पर शाम 4 बजे से ही दंपती बैठ गए और वह रात के 12 बजने का इंतजार करने लगे। घड़ी की सुइयों ने जैसे ही 12 बजाए दंपती स्नान के लिए राधाकुंड में उतर गए। राधाकुंड में दंपत्ति के एक साथ स्नान करने के पीछे वजह है कि जिनके संतान नहीं होती वह संतान प्राप्ति के लिए राधाकुंड में अहोई अष्टमी की मध्य रात को स्नान करते हैं। यहां स्नान करने के बाद जिन दंपत्ति के संतान प्राप्ति हो जाती है वह राधा रानी के चरणों में हाजिरी लगाने के लिए संतान के साथ राधाकुंड पहुंचते है और अहोई अष्टमी पर स्नान करते हैं।