हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। वृंदावन सो वन नहीं, नंदगांव सो गांव, वंशीवट सो वट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम। ब्रज में भजनों में यह पंक्ति यूं ही नहीं है, वास्तव में वंशीवट का वट वृक्ष अलौकिक है, इसमें आज भी ढोल मृदंग की आवाज सुनाई देती हैं। सूरदास ने भी लिखा था कि चार पहर वंशीवट सांझ परे घर आयो, मांट तहसील मुख्यालय से करीब एक किलोमीटर दूर भांडीरवन के समीप वही वंशीवट है। जहां द्वापर युग में योगिराज भगवान श्रीकृष्ण गाय चराने आते थे और यहां वह गोपियों के साथ रास किया करते थे। इसी वंशीवट में उन्होंने प्रलंबासुर राक्षस का वध किया और दावानल को पीया था।
पूरे बृज क्षेत्र में दस वट वृक्ष हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि यह वही वृक्ष हैं, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने महारास किया था। वंशीवट के श्रीदामा मंदिर परिसर में प्राचीन वट वृक्ष आज भी मौजूद है। यहां आज भी ध्यान मग्न हो उसकी टहनियों से कान लगाया जाए तो ढोल, मृदंग की आवाजें सुनाई देती हैं। माना जाता है कि भगवान द्वारा इसके नीचे महारास किए जाने से इस वट वृक्ष के कण कण में महारास की आवाजें रम गईं। कई बार देश विदेश से आए इंजीनियर की टीम भी इस पर शोध कर चुकी है पर वह भी यह नहीं जान पाई कि आवाजें आने का कारण क्या है। चौरासी कोस यात्रा का स्थल वंशीवट चौरासी कोस यात्रा में भी आता है। इसलिए यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता है। उत्तर प्रदेश बृज तीर्थ विकास परिषद की पहल पर पर्यटन विभाग ने पूरे वंसीवट की ऊंची चाहरदीवारी कराते हुए सुंदर गेट भी बना दिया है। श्रीदामा मंदिर के समीप श्याम तलैया का भी बृज तीर्थ विकास परिषद ने सुंदरीकरण कराया है। वंशीवट के जंगल में भजना नंदी संत महात्माओं की भरमार है। जहां कुटियाओं में रह रहे सैकड़ों संत महात्मा भजन-पूजा व तपस्या में लीन रहते हैं। श्रद्धालु इनके दर्शन के लिए लालायति रहते है।
7455095736
Author: Vijay Singhal
50% LikesVS
50% Dislikes