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NCERT की नई किताब में अकबर को लेकर जो छपा, क्या वो सही…मथुरा में बनवाए थे कई मंदिर

ByVijay Singhal

Jul 18, 2025
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हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। अपने शासन काल में अकबर ने मथुरा में राजस्व अधिकारी अलीखान तैनात किया था जिनकी पुत्री पीरजादी कृष्णभक्त थीं। अकबर अलीखान के जरिए उस जमाने में मथुरा से 11,55, 807 दाम वसूल कराता था वह भी पूरी सख्ती के साथ। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि ब्रज में आकर अकबर बेहद प्रभावित हुआ था। हिंदू धर्म के प्रति उसका झुकाव हुआ। उसके कार्यकाल में मथुरा, वृंदावन में कई मंदिरों का निर्माण हुआ। पुष्टि संप्रदायी प्रवर्तक आचार्य विट्ठलनाथ ने संवत 1627-28 में अकबर से राजकीय सहायता पाकर गोकुल में नई बस्ती बसाई। अकबर उनसे बहुत प्रभावित हुआ था। इसका जिक्र इतिहासकार प्रभुदयाल मीतल द्वारा लिखित पुस्तक ब्रज का इतिहास में भी जिक्र है। यही पुस्तक बताती है कि भले ही अकबर को सहिष्णु माना गया हो पर प्रशासनिक व्यवस्था में वह बेहद कड़क था। खास तौर से ब्रज क्षेत्र में। उसने मालगुजारी वसूली के लिए राजस्व अधिकारी नियुक्त किए थे, जिन्हें किरोड़ी कहा जाता था। ब्रज संस्कृति अध्येता डाॅ. राजेश शर्मा इसी पुस्तक के हवाले से बताते हैं कि अकबर के कार्यकाल में उसके वित्तमंत्री टोडरमल ने पूरा प्रशासनिक ढांचा ही बदल दिया था। नए सिरे से वसूली की व्यवस्था शुरु की गई थी जो बेहद सख्त थी। इससे अकबर का खजाना भरता चला गया। इस नई व्यवस्था के तहत पूरे साम्राज्य को 15 सूबों में विभाजित किया गया था। आगरा सबसे बड़ा सूबा बनाया जिसमें 13 सरकारें और 203 परगने बनाए गए। मथुरा तब साधारण मुहाल क्षेत्र था और इसका कोई बड़ा प्रशासनिक महत्व नहीं था। इसकी प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्यालय महावन था। अकबर ने यहां हाकिम अलीखान को राजस्व अधिकारी तैनात किया। अलीखान की पुत्री पीरजादी कृष्णभक्त थीं। उसके प्रभाव में अलीखान भी कृष्णभक्ति में रमने लगे। इस पर अकबर ने यहां तगड़ी मालगु़जारी तय की। यहां से 11,55, 807 दाम वसूली का लक्ष्य तय किया गया। उस समय मथुरा मुहाल का विस्तार 37347 बीघा भाग ही था और यह रकम काफी थी लेकिन इसको सालाना सख्ती से वसूल करने का निर्देश था। हालांकि इसके नाम पर अत्याचार न करने को प्रत्यक्ष तौर पर मना किया गया था। दरअसल, दाम फारसी शब्द दिरहम का अपभ्रंश था और यह एक तांबे का सिक्का था। 40 दामों का एक रुपया होता था और नौ रुपयों की एक सुनहरी मुहर होती थी जिसको अशर्फी कहा जाता था। यही सरकारी खजाने को भरने के लिए वसूल की जाती थीं।
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Vijay Singhal
Author: Vijay Singhal

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