हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। गोवंश में फैली लंपी बीमारी के बाद अब सुकरों में अफ्रीकन स्वाइन फ्लू फैल रहा है। अफ्रीकन स्वाइन फ्लू को लेकर पशु पालक दहशत में हैं। अफ्रीकन स्वाइन फ्लू के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए मथुरा वेटरनरी यूनिवर्सिटी के कुलपति ने पशु पालकों को सुझाव देते हुए विश्वविद्यालय परिसर में जांच केंद्र भी खुलवा दिया है। अफ्रीकन स्वाइन फीवर शुकरों में होने वाली विषाणु जनित बीमारी है। वर्तमान में इसका प्रकोप भारत में तेजी से देखने को मिल रहा है। इसी बीमारी के चलते मथुरा सहित आसपास के जिलों में 50 से ज्यादा शुकरों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी का कारण डीएनए जनित विषाणु है, जो शुकरों में तेजी से फैलता है। यह बीमारी अन्य किसी जानवर और मनुष्य में नहीं होती। वेटरनरी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर मुकेश ने बताया, “इस बीमारी में शुकरों को 104 डिग्री से लेकर 107 डिग्री तक तेज बुखार आता है। भूख नहीं लगती। पशु खड़े नहीं हो पाते और चलने में असमर्थ होते हैं। उल्टी दस्त होते हैं, दस्त के दौरान कभी-कभी खून भी आ जाता है। इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आने पर अन्य पशु भी चपेट में आ जाते हैं। इस बीमारी में आंखों से पानी और कीचड़ जैसा पदार्थ आता है। सांस लेने में दिक्कत होती है। सफेद शुकरों के लाल चकत्ते जैसे हो जाते हैं। इसके साथ कई इस बीमारी से ग्रसित पशु के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता और उसकी मृत्यु भी हो जाती है।”वेटरनरी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर मुकेश सिंह ने बताया, “इस बीमारी के लक्षण नजर आते ही तत्काल पशु पालक अपने पशु को पशु चिकित्सक के पास लेकर जाए। रोग ग्रसित पशु को स्वास्थ्य पशुओं से अलग रखा जाए और उसका खानपान भी अलग रहे। पशु की देखभाल कर रहे व्यक्ति खुद को सेनेटाइज करते रहें। शूकर फार्म में बाहरी व्यक्ति और वाहन का आवागमन न हो। संक्रमित फार्म की साफ-सफाई करने के साथ सेनेटाइज किया जाए। बचे हुए खाने को पशु को खिलाने से 30 मिनट पहले उसे उबाल लें। संक्रमित पशुओं को बाहर न आने जाने दिया जाए।”अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की बीमारी की चपेट में आए पशु की मृत्यु होने पर उसे खुले में न फेंका जाए। शव निस्तारण के लिए 3 से 5 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पशु को दबाकर उसमें चुना, नमक और ब्लीचिंग पाउडर डाला जाए। इसके बाद गड्ढे को सही तरीके से बंद किया जाए। शव निस्तारण करने वाले व्यक्ति को पूरी प्रक्रिया करने के बाद खुद को अच्छे से सेनेटाइज करना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय वेटरनरी यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर एके श्रीवास्तव ने बताया, “इस बीमारी को लेकर विषय विशेषज्ञों की एक टीम बनाकर प्रमुख लक्षणों के आधार पर बीमारी को चिह्नित करने, रोग होने पर ली जाने वाली सावधानियों, रोग से बचाव के लिए पशुपालकों द्वारा अनुसरण करने की विधि तैयार की गई है। इन दिशा-निर्देश को कुलपति ने पशु पालन विभाग को दिया है। कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय के अंर्तगत इस बीमारी की टेस्टिंग के लिए पशु का ब्लड सैंपल वेटरनरी यूनिवर्सिटी में लिया जा रहा है।”
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Author: Vijay Singhal
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