हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। राधाकुंड में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से 25 किलोमीटर दूर गिरिराज परिक्रमा मार्ग में चमत्कारी राधा व श्याम कुंड हैं। इन्हें राधाकुंड के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि निसंतान दंपती अहोई अष्टमी की मध्य रात यहां हाथ पकड़कर स्नान करें तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। यह पर्व द्वापरयुगीन है। इस दिन पति-पत्नी निर्जला व्रत रखकर राधाकुंड में तीन डुबकी लगाते हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद भी लोग यहां अपनी संतान के साथ राधारानी की शरण में आते हैं। इस बार स्नान 13 अक्तूबर सोमवार की मध्य रात रात्रि से प्रारंभ होगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापरयुग में राधाकुंड अरिष्ठ वन था। कंस ने यहीं अरिष्टासुर नामक राक्षस को बालकृष्ण का वध करने के लिए भेजा था। अरिष्टासुर बछड़े का रूप धारण कर कृष्ण की गायों के झुंड में शामिल हो गया। कृष्ण ने राक्षस को पहचान लिया और उसका जमीन पर पटक कर वध कर दिया। इस दौरान साथ में मौजूद राधारानी ने कृष्ण से कहा कि आपको गो हत्या का पाप लगा है। इसका उपाय देव ऋषि नारदजी से पूछिए। नारद मुनि ने कृष्ण को बताया कि संसार के सभी तीर्थ एक साथ मिलकर आपको स्नान कराएं तभी गो हत्या के पाप से मुक्ति मिल सकती है। देव ऋषि के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपनी बंसी से कृष्णकुंड बनाया जबकि राधारानी ने अपने कंगन से राधाकुंड।श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थ के जल को आमंत्रित किया और कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी की अर्धरात्रि को राधारानी कुंड में स्नान किया। इससे कृष्ण गो हत्या के पाप से मुक्त हो सके। दोनों कुंड एक-दूसरे से जुड़े होने के बाद भी उनका पानी अलग-अलग है। राधाकुंड के जल का रंग सफेद तो श्याम कुंड के जल का रंग काला प्रतीत होता है। मान्यता है यहां भी तीर्थों व देवी-देवताओं का वास होने के कारण अहोई अष्टमी पर स्नान करने से निसंतान दंपती को संतान की प्राप्ति होती है। इसी कामना को लेकर प्रतिवर्ष कई लाख दंपती यहां आकर स्नान करते हैं।
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Author: Vijay Singhal
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