हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। कृष्ण की नगरी ब्रज की धरा है ब्रज जहां की रज में आज भी अस्तित्व है कृष्ण तत्व का। यहां आज भी कृष्ण कालीन परंपराओं को जीवंत किया हुआ है। आगरा हो या मथुरा यहां श्रीकृष्ण से जुड़े हर पर्व को उसी मनोभाव के साथ निभाया जाता है। ब्रज में श्रीकृष्ण को गोपाल के नाम से भी पूजा जाता है। गोपाल यानी गो के पालक। उनके पथ का अनुसारण करते हुए आज गोपाष्टमी के अवसर पर देशी क्या विदेशी भी गोमाता की सेवा करने में तन- मन से जुटे हुए हैं। यहां तक कि विदेशी बालाएं भी कृष्ण भक्ति में लीन होकर आज ग्वाल वेश रखकर गोमाता की सेवा कर रही हैं। गोपाष्टमी का पर्व धूमधाम एवं श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। गौशालाओं में लोगों ने गो पूजा कर पुण्य की कामना की। इसके अलावा मंदिरों में प्रवचन कीर्तन के साथ भगवान कृष्ण के भजनों पर श्रद्धालु खूब झूमे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह गो पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित पर्व है।ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु के अनुसार मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अपना घमंड त्यागकर श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने आए। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण व उनके भाई बलराम पहली बार गाय चराने के लिए गए थे। वहीं श्रीमद्भागवत में बताया गया है कि जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें कामधेनु गाय निकली थी। जिसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया था। क्योंकि वे पवित्र थी। मान्यता है कि उसके बाद से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई। इतना ही नहीं महाभारत में बताया गया है कि गाय के गोबर और मूत्र में देवी लक्ष्मी का निवास होता है। इसलिए ही दोनों ही चीजों का उपयोग शुभ काम में किया जाता है। गाय और उसके बछड़े को नहला- धुलाकर उसका श्रृंगार किया जाता है। गोमाता के चरण स्पर्श किये जाते हैं और उनकी सींग पर चुनरी बांधी जाती है। परिक्रमा कर उन्हें चराने के लिए बाहर ले जाया जाता है। इस दिन ग्वालों को तिलक लगाया जाता है और उन्हें दान भी दिया जाता है। गाय शाम को चर कर जब घर लौटें तो फिर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन अच्छा भोजन हरा चारा, गुड़ व हरा मटर खिलाया जाता है। जिन घरों में गाय नहीं होती है वो लोग गौशाला जाकर उनकी पूजा करते हैं। गंगाजल व फूल चढ़ाकर गुड़ भी खिलाते हैं।
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Author: Vijay Singhal
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