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आठ सालों से बंद है सेवायतों की “सेवा”, अब बस टैक्स ही भर रहे बिहारी जी

ByVijay Singhal

Oct 23, 2022
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हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। व्रन्दावन में ठाकुर बांकेबिहारी जन-जन के आराध्य हैं, सबके पालनहार भी। उनके दान से बहुतों की रोजी-रोटी चलती है, कई की जिंदगी की गाड़ी भी। सेवायत परिवार के परिवार पढ़े, तो उसमें भी ठाकुर बांकेबिहारी का आशीर्वाद है। मंदिर में आने वाले दान से सबका काम चलता है। दान से खूब सेवा कार्य हुए, लेकिन आठ वर्ष से सेवा कार्य भूले, तो अपनी आय पर टैक्स बांकेबिहारी को देना पड़ रहा है। ठाकुर बांकेबिहारी के प्रति ये श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। दान के रूप में उनकी मासिक आय ही चार से पांच करोड़ रुपये की है। इसी धनराशि से कभी मंदिर कमेटी के सेवा कार्य चलते थे। सेवायतों के परिवार की बेटियों की शादी में सहयोग होता था। कमेटी तब दान की धनराशि से 51 हजार रुपये देती थी। गरीब परिवार के बच्चों की शिक्षा का खर्च भी देती थी। दान की आय से ही सेवायत परिवारों की विधवाओं और बुजुर्गों को पांच हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाती थी। ये व्यवस्था वर्ष 2014 तक चली। इसके बाद मंदिर कमेटी में आपसी विवाद हो गया। इसके बाद मंदिर की ओर से होने वाले सेवा कार्य बंद हो गए। अब न तो बेटियों की शादी में सहयोग हो पाता है और न ही पढ़ाई और पेंशन की व्यवस्था। दान का दायरा बढ़ता जा रहा है और सेवा कार्य बंद। दान की राशि खर्च न होने पर आराध्य को टैक्स देना पड़ रहा है। दरअसल, आयकर की धारा 12 (ए) के तहत पंजीकृत होने वाली संस्था या फर्म को आयकर में छूट मिलती है। मगर, यह छूट सशर्त है। इसके लिए दान से आई धनराशि का 85 प्रतिशत सेवा कार्यों पर खर्च करना होता है। बीते साल बांकेबिहारी मंदिर की ओर से यह खर्च नहीं हो पाया। मंदिर से जुड़े करीब दो सौ परिवार सेवायतों के हैं। ठाकुर बांकेबिहारी की आय प्रति माह करोड़ों में है, लेकिन इसमें 12 हजार रुपये (प्रति भोग) भोग सेवा आदि पर खर्च होता है। मंदिर के कर्मचारी और सुरक्षा पर करीब पचास लाख रुपये हर माह खर्च होता है। बांकेबिहारी मंदिर के कार्यकलाप संचालन के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर वर्ष 2014 में सिविल जज जूनियर डिवीजन को प्रशासक नियुक्त किया गया। तब से यही व्यवस्था प्रभावी है।
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Vijay Singhal
Author: Vijay Singhal

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