हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। व्रन्दावन में उत्तर भारत के प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय शैली के रंगनाथ मंदिर में चल रहे बैकुंठ उत्सव का समापन हो गया। दस दिवसीय इस उत्सव में भगवान रंगनाथ ( विष्णुजी) ने माता गोदा जी ( लक्ष्मी जी) के साथ विभिन्न स्वरूप में दर्शन दिए। बैकुंठ उत्सव में भगवान रंगनाथ के दर्शन कर श्रद्धालु अभिभूत हो गए। बैकुंठ उत्सव की शुरुआत 2 जनवरी बैकुंठ एकादशी से हुई। बैकुंठ एकादशी पर भगवान रंगनाथ पालकी में विराजमान हो कर ब्रह्म मुहूर्त में बैकुंठ द्वार से निकले। वर्ष में एक बार भगवान रंगनाथ ब्रह्म मुहूर्त में इस बैकुंठ द्वार से निकलते हैं। इस अवसर पर भगवान के दर्शन करने और बैकुंठ द्वार से निकलने के लिए लाखों भक्त रंगनाथ मंदिर पहुंचते हैं। दस दिवसीय बैकुंठ उत्सव में भगवान रंगनाथ माता गोदा जी के साथ एक दिन सुबह और 9 दिन शाम को बैकुंठ द्वार से निकलते हैं। 9 दिन शाम के समय बैकुंठ द्वार से निकल कर भगवान बैकुंठ लोक पहुंचते हैं। यहां भगवान राम और कृष्ण अवतार में भक्तों को दर्शन देते हैं। भगवान रंगनाथ बैकुंठ उत्सव के दौरान किसी दिन भगवान राम की लीला के स्वरूप में तो किसी दिन भगवान कृष्ण की लीलाओं के स्वरूप में दर्शन देते हैं। सैंकड़ों वर्षों से चल रही इस परंपरा का हर वर्ष पूरे विधि विधान से निर्वहन किया जाता है। इस उत्सव के दौरान भगवान रंगनाथ ने कभी बकासुर का वध किया, कभी मारीच का तो कभी राज्याभिषेक स्वरूप में दर्शन दिए। कृष्ण अवतार की लीलाओं में भगवान को कभी माखन चोर बनाया,कभी दामोदर तो कभी गोवर्धन धारी। बैकुंठ उत्सव के अंतिम दिन भगवान की सवारी चांदी की पालकी में विराजमान हो कर बैकुंठ द्वार से होते हुए बैकुंठ लोक में पहुंची। यहां भगवान की पालकी को भक्तों ने कंधे पर उठाया और फिर बैकुंठ लोक की 5 परिक्रमा लगवाई। इसके बाद मंदिर के पुजारियों ने भगवान की कुंभ आरती कर नजर उतारी। इस दौरान पूरा मंदिर भगवान रंगनाथ के जयकारों से गुंजायमान हो उठा।
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Author: Vijay Singhal
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