हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा जिला कारागार में निरुद्ध बंदी आत्मनिर्भर बन कर हजारों रुपए कमा रहे हैं। ये बंदी अपने हुनर के जरिए जेल में निरुद्ध रहते हुए न केवल रुपए कमा रहे, बल्कि परिवार की भी आर्थिक मदद कर रहे हैं। जेल में निरुद्ध किसी कैदी ने रुपए जोड़कर अपनी मां का इलाज कराया है तो कोई अपने माता-पिता को हज पर भेजना चाहता है। मथुरा जिला कारागार में 1700 से ज्यादा कैदी विभिन्न आपराधिक मामलों में निरुद्ध हैं। मथुरा जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों को सुधारने के लिए जेल प्रशासन विभिन्न योजना चला रहा है। जेल प्रशासन उनको अपराध का रास्ता छोड़कर सामाजिक जीवन जीने के लिए कभी धार्मिक आयोजन करता है तो कभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए संदेश देने की कोशिश करता है। इसके अलावा जेल में बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके हुनर का प्रयोग कर विभिन्न कार्य कराए जा रहे हैं। मथुरा जिला कारागार में भगवान की पोशाक बनाई जा रही हैं। गाजियाबाद की सामाजिक संस्था के सहयोग से जेल में निरुद्ध कैदी भगवान की पोशाक बना रहे हैं। 5 कैदियों का ग्रुप भगवान की आकर्षक पोशाक बनाता है। यह पोशाक सामाजिक संस्था की मदद से बेची जाती हैं। जिनसे होने वाली आय का एक हिस्सा इन पोशाकों को बनाने वाले कैदियों को दिया जाता है जिससे उनकी आमदनी हो जाती हैं।
जेल में निरुद्ध मुस्लिम कैदी इरशाद उर्फ कलुआ पुत्र मोहम्मद शाकिर अकबर हत्या के मामले में पिछले 6 साल से जेल में निरुद्ध है। थाना गोविंद नगर क्षेत्र का रहने वाले इरशाद ने 2016 में एक व्यक्ति की हत्या की। जिसके बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 16 जुलाई 2016 से जेल में निरुद्ध इरशाद को अब अपने किए पर पछतावा है। इरशाद ने अपने किए पर पश्चाताप करते हुए भगवान की पोशाक बनाने का निर्णय लिया। इरशाद ने जब अपनी इच्छा जेल प्रशासन को बताई तो जेल प्रशासन ने उसको मशीन उपलब्ध कराई और कच्चा माल गाजियाबाद की संस्था ने। जिसके बाद इरशाद ने पांच कैदियों का ग्रुप बनाया और शुरू कर दिया पोशाक बनाना। जिला जेल में पोशाक बना रहे इरशाद को इस काम से आमदनी भी हो रही है। इरशाद की इच्छा है कि वह अच्छे काम के द्वारा कमाई गई रकम से अपने माता पिता को हज भेजे। इरशाद ने पोशाक के काम से अभी तक 1 लाख रुपए जोड़ लिए हैं। इरशाद ने बताया कि उसने कभी भी अपराध न करने का प्रण लिया है। धीरज पुत्र रामजी लाल बलात्कार के मामले में जेल में निरुद्ध है। 14 अगस्त 2018 को जेल में निरुद्ध हुए धीरज को कोर्ट ने 30 जनवरी 2021 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सजा मिलने के बाद धीरज डिप्रेशन में आ गया। इसी दौरान जेल में हथकरघा की शुरुआत हुई। धीरज ने जेल प्रशासन से हथकरघा में काम करने की इच्छा जताई। जिसके बाद धीरज ने हथकरघा में काम करना शुरू किया। यहां से धीरज के जीवन में बदलाव आ गया और उसने अपने किए पर पछतावा करते हुए प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। धीरज को सजा मिलने का बाद चिंता थी कि उसकी डिप्रेशन में रहने वाली मां का इलाज कौन कराएगा, पत्नी बच्चों का क्या होगा। लेकिन जब धीरज ने अपने हुनर का प्रयोग करते हुए हथकरघा का काम करना शुरू किया तो उसे आमदनी होने लगी और उसकी चिंता दूर हो गई। धीरज ने एक वर्ष में 80 हजार रुपए कमाए। इस राशि से धीरज ने डिप्रेशन में रह रही मां का इलाज कराया और अपने केस की पैरवी के लिए रुपए घर भेजे। 14 जुलाई 2020 से अपहरण और बलात्कार जैसे मामले में जेल में बंद कैदी संतोष पुत्र राजेंद्र ने अपराध का रास्ता छोड़कर सामाजिक जीवन जीने का प्रण लिया है। संतोष वर्तमान में जेल में निरुद्ध रहते हुए हथकरघा के काम की कमान संभाल रहा है। संतोष ने इस काम के जरिए अब तक 90 हजार रुपए कमाए। संतोष ने इन रुपयों को जेल में बंद भाई की जमानत के लिए पैरवी करने के लिए अधिवक्ता को दिया। जिससे भाई की जमानत हो गई और भाई ने पढ़ाई शुरू कर दी। संतोष अपने घर में कमाने वाला इकलौता सदस्य था।हत्या के मामले में 1 मई 2019 से निरुद्ध बंदी जितेंद्र पुत्र चंदों सैनी ने जेल प्रशासन द्वारा बंदियों के आत्मनिर्भर बनाने के लिए चलाई जा रही एलईडी बल्ब बनाने की योजना में काम करना शुरू किया। जितेंद्र ने इस काम के जरिए जेल में रहते
हुए 70 हजार रुपए कमाए। इन रुपयों को जितेंद्र ने परिवार के पास भेजा। जिससे परिवार वालों ने मकान का किराया,बच्चों की स्कूल फीस जमा की। इसके अलावा जितेंद्र के द्वारा कमाई गई रकम से उसके केस की पैरवी शुरू कर दी है। मथुरा जेल में वर्तमान में 1700 से ज्यादा बंदी निरुद्ध हैं। किसी न किसी आपराधिक मामले में निरुद्ध इन बंदियों के हुनर का प्रयोग करते हुए जेल प्रशासन इनको आत्म निर्भर बना रहा है। जेल में वर्तमान में पोशाक, हथकरघा, एलईडी बल्ब आदि बनाने का काम किया जा रहा है। इन कामों को करके बंदी न केवल आमदनी कर रहे हैं बल्कि अपने जीवन में सुधार लाने का प्रण भी कर रहे हैं।
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