हिदुस्तान 24 टीवी न्यूज चीफ विजय सिंघल
मथुरा। सौंख में गोवर्धन रोड के किनारे स्थित कस्बा का ऐतिहासिक गढ़वाल टीला पुरातत्व अन्वेषकोें के शोधक्रम में काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। रखरखाव और संरक्षण के अभाव में शेष रहे अवशेष भी मिट्टी में मिले जा रहे हैं। अपने गर्भ में पुरा सभ्यता के कई रहस्यों को छुपाए यह टीला अब इतिहास से कहानी बन जाने की ओर है। टीले के चारों ओर निरंतर अतिक्रमण जारी है और विभाग की उपेक्षा ने अतिक्रमणकारियों के हौंसले बुलंद कर रखे हैं। टीले के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि टीले से प्राप्त कलाकृतियों से भारत ही नहीं जर्मनी के संग्रहालय भी सजे पड़े हैं। एक ओर कस्बा के लोग भले ही टीले को सामान्य टीला समझते हो लेकिन अभिलेखों में करीब 7 हजार वर्ग मीटर में फैला यह टीला पुरातत्ववेताओं और जिज्ञासुओं के लिए जिज्ञासा और आकर्षण का केंद्र माना जाता रहा है। यही कारण है कि इस टीले को लेकर विभाग भी काफी योजना बनाता रहा है पर कोई भी योजना इसके काम नहीं आ सकीं। इस टीले से 1400वीं सदी से 1600वीं सदी तक कुषाण कालीन मौर्यकाल, शुंग काल, व जाट बिरादरी से जुड़ी रही इतिहास की कई जानकारियां पुरातत्ववेताओं ने जुटाई हैं। टीले की सर्वप्रथम राज्य सरकार का ध्यान 1966 में गया और तब राज्य पुरातत्व विभाग की निगरानी में उत्खनन भारतीय कला संग्रहालय लखनऊ के तत्कालीन जर्मनी निवासी निदेशक हरवर्ट हर्टल के निर्देशन में इस टीले का खुदाई का कार्य शुरू हुआ जो करीब 8 वर्ष तक 1974 तक चला। लेकिन किसी कारणवश बीच में ही खुदाई का कार्य रोकना पडा। आज भी कई वर्ग किमी क्षेत्रफल का इलाका खुदाई के इंतजार में है। इस दौरान टीले से कई सभ्यताओं से संबंधित मूर्तियां और बर्तन प्राप्त हुए। कई सौ वर्ष पुरानी राजसी सभ्यता की झलक भी यहां दिखायी पड़ती है।
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Author: Vijay Singhal
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